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डिजिटल मैमोग्राफी - एक प्रभावी स्तन कैंसर स्क्रीनिंग और निदान पद्धति प्रौद्योगिकी और उपचार केंद्र

अवलोकन

स्तन कैंसर भारतीय महिलाओं में पाया जाने वाला सबसे आम प्रकार का कैंसर है। अध्ययनों से पता चलता है कि हर 4 मिनट में एक महिला के स्तन कैंसर का पता चलता है। सबसे आम कैंसर होने के बावजूद, अगर इसका जल्द पता चल जाए तो सही क्लिनिकल जांचों के माध्यम से इसका इलाज हो सकता है और इससे उभरकर जीवित रहने की दर काफी अच्छी है।

शारीरिक परीक्षण, ABVS और डिजिटल मैमोग्राफी जैसी स्क्रीनिंग विधियों से स्तन कैंसर का जल्द पता लगता है और ये विधियां रोगियों को इस बीमारी से लड़ने का सबसे अच्छा अवसर प्रदान करती है

डिजिटल मैमोग्राफी स्तन कैंसर के लिए अत्यधिक सुरक्षित, गैर-इनवेसिव यानी गैर-आक्रामक और प्रभावी जांच पद्धति है।

डिजिटल मैमोग्राफी विधि स्तनों की छवियां लेने के लिए कम-मात्रा के विकिरण एक्स-रे का उपयोग करती है, और बाद में इन छवियों का उपयोग हानिरहित और घातक ट्यूमर जैसी असामान्यताओं का पता लगाने के लिए अध्ययन किया जाता है। पारंपरिक मैमोग्राफी (फिल्म मैमोग्राफी) और डिजिटल मैमोग्राफी के बीच सबसे बड़ा अंतर यह है कि डिजिटल मैमोग्राफी विधि में छवि को फिल्मों पर कैप्चर न करके बल्कि सीधे एक विशेष कंप्यूटर पर कैप्चर और रिकॉर्ड किया जाता है।

डिजिटल मैमोग्राफी कैसे काम करती है?

डिजिटल मैमोग्राफी सिस्टम सॉलिड-स्टेट डिटेक्टर के साथ आता है, जो स्तन से गुजरने वाले एक्स-रे को कैप्चर करता है और उन्हें इलेक्ट्रिकल सिग्नल में बदलता है। बाद में इन इलेक्ट्रिकल सिग्नल का उपयोग स्तनों की डिजिटल छवियां बनाने के लिए किया जाता है और इन छवियों को कंप्यूटर पर स्टोर किया जाता है।

प्रक्रिया के दौरान, तकनीशियन रोगी को अपने स्तनों को दो प्लेटों के बीच रखने के लिए कहेगा। ये प्लेटें स्तनों को चपटा और संकुचित करती हैं। बाद में एक्स-रे स्तनों के माध्यम से पास किए जाते हैं, जो दूसरी तरफ डिटेक्टरों द्वारा कैप्चर किए जाते हैं और डिजिटल छवियों में बदल जाते हैं।

छवियों को ऑन्कोलॉजिस्ट के साथ साझा किया जाएगा, जो स्क्रीनिंग परिणामों का आकलन करेंगे। पूरी प्रक्रिया में 30 मिनट तक का समय लग सकता है।

डिजिटल मैमोग्राफी के फायदे

डिजिटल मैमोग्राफी के द्वारा रेडियोलॉजिस्ट ज़ूम इन कर सकता है और असामान्यताओं को बेहतर ढंग से देख पाता है और वह सर्वोत्तम क्लिनिकल निर्णय ले सकता है जबकि फिल्म मैमोग्राफी में ऐसा नहीं हो पाता है।


चूंकि इसमें फिल्म मैमोग्राफी की तुलना में ज़्यादा अच्छे परिणाम मिलते हैं इस लिए डिजिटल मैमोग्राफी करने के बाद दुबारा परीक्षण करने की ज़रूरत नहीं रहती है।


डिजिटल मैमोग्राफी में विकिरण की मात्रा 25% कम हो जाती है, अतः यह पुरानी जांच तकनीकों की तुलना में अधिक सुरक्षित है।


डिजिटल मैमोग्राम उन महिलाओं में स्तन कैंसर का पता लगाने में विशेष रूप से सहायक हैं जिनके स्तन ऊतक घने होते हैं ।


यह एक गैर-इनवेसिव यानी गैर-आक्रामक प्रक्रिया है जो समय कम लेती है और सटीक परिणाम देती है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

मैमोग्राफी प्रक्रिया के दौरान कुछ महिलाओं को असुविधा होती है, जबकि कुछ को बिल्कुल भी असुविधा नहीं होती है। दबाने से दबाव के कारण महिलाओं को दर्द और परेशानी हो सकती है, और यह सब सामान्य है। यह कुछ समय बाद चला जाता है। हालांकि, कुछ महिलाओं को दर्द के लिए दवा की भी जरुरत हो सकती है।

स्तनों में किसी प्रकार की असामान्यताओं पता लगाने के लिए मैमोग्राम उपयोगी है। यह हानिरहित और घातक दोनों प्रकार के ट्यूमर की वृद्धि दिखाता है। शारीरिक तौर पर महसूस होने से कम से कम दो साल पहले ही मैमोग्राम ट्यूमर का पता लगा सकता है।

डिजिटल मैमोग्राम से स्तन के घने ऊतकों के बीच छिपे ट्यूमर का पता लग सकता है। फिल्म मैमोग्राम की तुलना में डिजिटल मैमोग्राम विधि से सूक्ष्म परिवर्तन या असामान्यताएं अधिक स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं। अध्ययनों से पता चला है कि डिजिटल मैमोग्राफी की सटीकता दर 89.3% है।

डिजिटल मैमोग्राफी की पूरी प्रक्रिया में 10 से 30 मिनट का समय लग सकता है।

महिलाओं को 40 साल की उम्र से मैमोग्राम जांच करनी शुरू कर देनी चाहिए। स्तन कैंसर के पारिवारिक इतिहास वाले लोगों को 35 साल की उम्र से जांच करनी शुरू कर देनी चाहिए।

40 से 54 वर्ष की आयु की महिलाओं को हर साल एक बार मैमोग्राम जांच करानी चाहिए। वहीं 55 साल से ऊपर की महिलाओं को हर दो साल में एक बार स्क्रीनिंग जरूर करवानी चाहिए।